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Monday, April 27, 2020

SHAIVISM TODAY SOUL SPEAK ( 14 ) WHAT'S GOING TO BECOME OF US ? आखिर क्या होगा हम सब का ?





With the Covid pandemic reaching Tsunamical dimensions throughout the world, most Governments have rightly imposed lockdowns and isolation periods at home.
Like i said twice before, till yesterday we were in control of our fabricated lifestyles, in control of our economics, our social standing, our entertainment, our exercise regimen, our eating habits, and so on; And one day we just woke up to see, hey presto, all gone. Just like that.
As if a magician made our whole comfort zone disappear, right in front of our eyes. Virtually Overnight, as another friend put it rather bluntly, " And just like that,money, social status and all that superficial shit, means nothing"

Whether we are vocal about the current crisis or whether we pray silently, whether we sermonise as though we are well informed, or whether we cock our ears to note any new information, whether we are part of the Official team trying to help, or whether we are the hapless citizen, obediently conforming to what we are being told to do, basically one question lurking in majority of the minds is, "Whats going to become of us?"
And the answer, well no one really knows.

If we couldn't even predict so much change in our centuries of schedule in just one day, how would we state with certainty whats going to happen. The truth is that God, Nature, call it what you want, has presented us with the 'Uncertainty Principle"
So, are we going to be pessimist about this? Are we going to wait hopelessly for doomsday? No. That is not the spirit of mankind, or all of life itself. Life strives to live, this, as the scientist will tell you, is one of the foremost signs of 'life,' it strives for itself. And man has been the epitome of all this.
Ever since we first made our appearance in rocky caves, we strove to find, discover, innovate, update, and move on.
We pride ourselves to be at least the crest of all creation ( science declaration ) , if not in the image of God Himself ( spiritual view ),
and we have done pretty well so far, all the way from discovering how to create fire, making the wheel and so on from IA ( Intelligent Apes ) to landing on the moon, creating cyberspace and AI (Artificial Intelligence) .
And yet, despite all the fantastic technology, invention, resource, communication, and global connection that our village planet has, we have come to our wits end.

What can we redeem? Two things come to mind:
A) We wrongly thought that we are the only species which has ownership on this planet. Legal titles do not give us that right over all the other animals, who live in the same habitat.

B) Even among our own kind, we made hierarchies of privilege, based on power and money.We gave importance to things, rather than beings.
So, while we don't really know what's next, the one thing we can do, is look for our lost compassion and kindness.
And how will that help in a real pandemic crisis, you may ask.
Well the answer is that it has always helped: It has always helped when in our darkest time we light the lamp of kindness.
It doesn't matter who is going to 'go' first. What matters is that we uphold certain principles now, which actually show Nature that we as a species also want to co -inhabit the Planet in our own place, with humility, compassion and understanding.
Try it. What have we got to lose more than what we already fear?
Aum Namah Shivaye.

~ Shail Gulhati


आज जब कोविद १९ एक पान्डेमिक बन चुक्का  है, और सुनामी के प्रकार सारे विश्व में फैल चुक्का है ,
अधिकतर सरकारों ने अपने अपने देशों में लाकड़ौन घोषित कर दिया है, और यह एक सही निर्णय है.

कितने अचम्बे  की बात है यह,की कल तक हम सब अपनी फैब्रिकेटेड ज़िन्दगियों के स्वयं मालिक थे , अपनी राशि , अपनी सोसाइटी , अपनी एंटरटेनमेंट , अपनी एक्सरसाइज, अपने खाने पीने के ; सभी चीज़ों के मालिक थे  , और फिर , एक सुबह हम जागे तोह छू मंतर!, सब कुछ गायब  हो  गया!
 जैसे किसी जादूगर ने हमारा सब  कुछ हमारी  ही आँखों  के सामने से रातों रात  अंतर्धान कर दिया हो ;
 रातों रात वह धन राशि , वह “सोशल स्टैंडिंग” , वह बेकार का “ शो ऑफ “  करना,  सब शुन्य  हो गया  .

चाहे हम इस मुसीबत के बारे में बात करते हों, या चाहे हम चुप चाप प्रार्थना करते हों, चाहे हम महानुभाव की तरह भाषण देते हों, या फिर अपने ही कान खड़े रखते हों कुछ भी जानकारी के लिए , चाहे हम सरकारी टीम का हिस्सा हों ,या फिर बेबस  नागरिक हों, जो हर आदेश का पालन करता है ; एक ही प्रश्न सभी के मन  को परेशान कर रहा है  :
" आखिर क्या होगा हम सब का ?"

और सच यह है की इसका सही उत्तर किसी को नहीं मालूम . अरे,  अगर हम सदियों के रूटीन  का एक दिन में उलट होना नहीं प्रेडिक्ट कर सके, तो हम यह कैसे कह सकते हैं की आगे क्या होगा ?  

सच यह है की कुदरत, भगवान्, ईश्वर जो भी आप उस शक्ति को बुलाना चाहते हैं , उस ईश्वर ने हम सब के सामने
" अन्न सर्टेंटी प्रिंसिपल " रख दिया है , यानि अब आगे क्या होगा यह निश्चित नहीं किया जा सकता .

तोह फिर क्या हम सब हार मानके,  हाथ पे हाथ रखे बैठ जाएँ ? क्या हम बेबसी से सृष्टि में प्रलये का इंतज़ार करें ?


नहीं . यह मानवता का प्रतीक नहीं है, यह जीवन का प्रतीक नहीं है, जीवन तो एक संघर्ष है ,जो हमें करना है,
कोई  साइंटिस्ट भी आपको यह कहेगा की संघर्ष ही तोह जीवन का प्रतीक है ,और मानव जाती जीवों में प्रधान हैं,
 इस लिए संघर्ष करना उनका साहस है. जबसे मानवता गुफाओं में जीती थी,उसने संघर्ष किया, अविष्कार के लिए,जाग्रत्तके लिए, “अपडेशन”के लिए,और इस प्रकार आगे बढ़ते रही .
साइंस के मुताबिक हम अपने आप को सृष्टि के सभी जानवरों में उत्तम मानते हैं,
और आध्यतमिक गुरु पुरुषों के मुताबिक भी हम स्वयं ईश्वर की छवि में बनाए गए हैं.


और अब तक देखा जाये तो मानवता ने काफी सफलता पाई है , गुफाओं के दिनों में ही हमने आग को उत्पन्न करना सीखा , चक्र या " व्हील " बनाया , और सयाने बंदरों से लेकर “ AI- आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस” तक पहुँच गए ,चन्द्रमा पर लैंड कर गए , यहाँ तक की आर्टिफीसियल स्पेस , “साइबर स्पेस” भी बना गए ! लेकिन इतनी ज़बरदस्त टेक्नोलॉजी और इन्वेंशन होते हुए भी आज इस एक पान्डेमिक से हम सब को कुछ समझ नहीं आ रहा की आगे कैसे चलें.
आखिर हम क्या कर सकते हैं ?

दो चीज़ें मन में आती हैं

१ ) हमने यह सोचा की मानव जाती ही पृथ्वी की मालिक है , यह सोच गलत थी , लीगल डॉक्यूमेंट मानव के न्यायालय में अधिकार देते हैं , परन्तु इसका यह अर्थ नहीं की हम उस धरती के मालिक बन गए हैं .

२) मानवता के बीच में भी, हमने ऊंच नीच के दर्जे बना दिए , धनवान और शक्तिशाली लोगों को प्रथम रखा :
 हमने लोगों को नहीं बल्कि वस्तुओं को महत्वता दी.

इस लिए , चाहे हमें यह नहीं मालूम की आगे क्या होगा,एक चीज़ जो हमने खो दी है, उसे  हम दुबारा से ढून्ढ सकते हैं , और वह है करुणा.
जी हाँ ,करुणा ही वह आत्मशक्ति है जो Carona का सामना करेगी .

आप कहेंगे इतने गंभीर पान्डेमिक में करुणा कैसे सहायता करेगी ?
तोह मित्रों उसका उत्तर यह है की इतिहास गवाह है ,जब जब मानवता को इतनी गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, तो वह “ मानव की दुसरे मानव और दुसरे जीवों के प्रति करुणा”  ही थी जिसने सब कुछ ठीक कर दिया. जब भी घोर अँधेरे में हमने करुणा का दीपक जलाया है तोह अँधेरा दूर हुआ है : हमें अपने गुरुओं और पीरों की सिखाई हुई आध्यात्मिकता को फिरसे जाग्रत करना होगा.

अब कौन " तिक्केगा"  और कौन पहले " जायेगा " इस का कोई महत्त्व नहीं रहा,आवश्यक यह है,

 की अब हम मानवता के श्रेष्ट सिद्धांतों को अपनाएं ,इस सृष्टि को एक इशारा दें की अब हम भी ईश्वर की दी गयी सृष्टि में सब के साथ बारीदार होकर जीना चाहते हैं , हम अपना स्थान चाहते हैं, विनम्रता, करुणा, और अच्छाई के साथ.



मेरा आप सबसे आग्रेय है,अपने अंदर का दीप जलाओ,अपनी आध्यात्मिकता रोशन करो,
कोशिश करो मित्रों, अब और गुमाने के लिए रखा ही क्या है हमारे पास ?

~ शैल गुलहटी
(शैल गुलहटी आध्यात्मिक पुस्तक " शिवा,दी अल्टीमेट टाइम ट्रैवलर " के लेखक हैं )

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